Wednesday 25 May 2022

उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने गा़जी़पुर के गंगा तट पर स्थित बैकुंठधाम के सौंदर्यीकरण के कार्य का वर्चुअल लोकार्पण किया

उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने गा़जी़पुर के गंगा तट पर स्थित बैकुंठधाम के सौंदर्यीकरण के कार्य का वर्चुअल लोकार्पण किया

  • गौरवपूर्ण सामाजिक-धार्मिक अनुष्ठान के प्रयासों को आम जन को समर्पित करने के साथ ही माँ गंगा के चरणों में पूजा-अर्चना भी की

जम्मू/ग़ाज़ीपुर:  जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने आज गा़ज़ीपुर के गंगा तट पर स्थित बैकुंठधाम के सौंदर्यीकरण के कार्य का वर्चुअल लोकार्पण किया। उन्होंने गौरवपूर्ण सामाजिक-धार्मिक अनुष्ठान के प्रयासों को आम जन को समर्पित करने के साथ ही माँ गंगा के चरणों में पूजा-अर्चना भी की।

इस अवसर पर बोलते हुए उपराज्यपाल ने सनातन धर्म में जन्म, विवाह, मृत्यु की घटनाओं की पवित्रता के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जन्म और मृत्यु, जीवन के शाश्वत सत्य के रूप में जाने जाते हैं।

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उपराज्यपाल ने कहा कि मनुष्य की अंतिम यात्रा के लिए एकत्रित लोगों के लिए पीने का पानी, शेड, बेंच, पर्याप्त प्रकाश व्यवस्था, बराम्दे जैसी बुनियादी सुविधाओं की आवश्यक व्यवस्था के साथ मुक्तिधाम के सौंदर्यीकरण परियोजना की प्रक्रिया स्थानीय लोगों और रिलायंस फाउंडेशन के सहयोग से, नवंबर 2018 में 4.10 करोड़ रुपये की लागत के साथ शुरू की गई थी।

उपराज्यपाल ने कहा कि बैकुंठधाम के विकास से न केवल स्थानीय आबादी बल्कि अन्य क्षेत्रों से मुक्तिधाम आने वाले लोगों की भी ज़रूरतें पूरी होंगी। उपराज्यपाल ने मुक्तिधाम में उचित स्वच्छता बनाए रखने के अतिरिक्त गंगा के कटाव को ध्यान में रखते हुए गंगा किनारे पेड़ लगाने की अपील की। उन्होंने कहा कि इस जगह का विशेष ध्यान रखना हम सब की सामूहिक ज़िम्मेदारी है।

इस अवसर पर राजनीतिक प्रतिनिधियों, नगर पालिका अध्यक्ष और स्थानीय निवासियों सहित समाज के कई गणमान्य लोग उपस्थित थे।

बैकुंठधाम के सौंदर्यीकरण कार्य के वर्चुअल लोकार्पण के मौके पर उपराज्यपाल जी का वक्तव्य:

“अभी चंद मिनट पहले ही मैं जम्मू से श्रीनगर पहुंचा हूँ और वर्चुअल माध्यम से आप लोगों से जुड़ा हूँ। दरअसल, इस बैकुंठधाम के लोकार्पण समारोह में मैं स्वयं उपस्थित होना चाहता था लेकिन व्यस्तता की वजह से वहाँ आना संभव नहीं हो पाया। औपचारिक रूप से रजागंज के इस मुक्तिधाम का लोकार्पण करते हुए मुझे अत्यंत प्रसन्नता है। हमारे सनातन धर्म में जन्म, जनेऊ, विवाह इत्यादि संस्कारों के साथ-साथ मृत्यु को भी एक संस्कार के रूप में माना जाता रहा है। कबीरदास जी कहते थे- 

जिस मरनै थै जग डरै, सो मेरे आनंद, 

कब मरिहूँ कब देखिहूँ, पूरन परमानंद।   

जन्म एवं मृत्यु यह दो बातें जीवन के शाश्वत सत्य के रूप में जानी जाती हैं। मनुष्य जितना सुखमय, समृद्ध जीवन जीता है, मैं समझता हूँ, संन्यास और उसके बाद देह त्याग की अवस्था उतनी ही वैराग्यमय होती है। मनुष्य की अंतिम यात्रा में शामिल आत्मीय जनों के लिए बुनियादी सुविधाओं, पानी, छाया, बेंच, बरामदा आवश्यक है क्योंकि यह एक ऐसा समय होता है जब इंसान थोड़ी देर बैठकर जीवन की क्षणभंगुरता के बारे में चिंतन करना चाहता है। इस घाट पर गाजीपुर के अलावा आसपास के जनपदों से भी लोग शवदाह के लिए आते थे लेकिन मूलभूत सुविधाओं के अभाव में उन्हे काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। खासकर बरसात के मौसम में ना सिर्फ लकड़ियों के भंडारण बल्कि दाह-संस्कार में भी समस्या आती थी और कई बार दाह संस्कार बाधित भी होता था। अन्य जिलों, खासकर आजमगढ़, मऊ से आने वाले लोगों को इस वजह से बहुत परेशानी होती थी। उस समय मैं केंद्र में मंत्री था और अक्सर मिलने वाले अनुरोध करते थे कि सभी सुविधाओं से युक्त बैकुंठधाम का निर्माण रजागंज में किया जाए। इसलिए आम नागरिकों की परेशानियों को ध्यान में रखते हुए तथा परलोक एवं पुनर्जन्म के संस्कार की भावनाओं का सम्मान करते हुए गरिमापूर्ण अन्त्येष्टि हेतु व्यवस्था युक्त मुक्तिधाम के लिए 29 नवंबर 2018 को भूमि पूजन किया गया था और निर्माण की प्रक्रिया आरंभ की गई थी। मैं रिलायंस फाउंडेशन तथा सभी स्थानीय लोगों के प्रति हृदय से कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ। आप सभी के सक्रिय सहयोग से इस महत्वपूर्ण कार्य को पूरा किया जा सका है।

4 करोड़ 10 लाख रुपये की लागत से बनकर तैयार हुए इस मुक्तिधाम में लोगों के लिए शुद्ध पेयजल, पर्याप्त लाइटिंग तथा शौचालय की भी व्यवस्था की गई है। कल मैंने इसका लेटेस्ट फोटो देखा था और मैं यह कह सकता हूँ कि पूरे क्षेत्र में यह अपनी तरह का पहला मुक्तिधाम है जिसे सुनियोजित तरीके से बनाया गया है और गौरवमयी सामाजिक-धार्मिक अनुष्ठान के साथ गरिमापूर्ण अन्त्येष्टि के मानव अधिकार को सुरक्षित रखने का प्रयास किया गया है।

मैं आप लोगों से, सभी स्थानीय नागरिकों से अनुरोध करना चाहूँगा कि इसके पीछे की तरफ खाली जमीन पर, गंगा के बढ़ाव एवं कटाव को ध्यान में रखते हुए स्मृति-वन के रूप में पेड़ पौधे भी लगाए जाय ताकि छाया के साथ-साथ आत्मीय जनों की यादें भी इससे जुड़ी रहें। इस जगह का उचित सैनिटेशन तथा हायजीन (Hygiene) मैन्टैन करना एक बड़ी चुनौती होगी और यह किसी एक व्यक्ति की जिम्मेदारी ना होकर हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी होगी कि मुक्तिधाम तथा लोगों के बैठने की जगह यानि विश्राम स्थल में इस बात का खास खयाल रखा जाय। अन्त्येष्टि की जगह पर लोगों की भावनाएं एवं संवेदनाएं बड़े भावनात्मक स्तर पर जुड़ी होती हैं इसलिए मैं आशा करता हूँ कि उतनी ही स्नेह एवं श्रद्धा से इस मुक्तिधाम का रख रखाव भी होगा। इस बैकुंठधाम की सुरक्षा, हरियाली, पीने के पानी की अनवरत व्यवस्था तथा सभी सुविधाओं की देखभाल की जिम्मेदारी अब आम नागरिकों की और अगर आप लोग चाहें तो सभी प्रतिष्ठित लोगों की एक समिति बनाकर उसे रख रखाव और संरक्षण की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है।

गाजीपुर के सभी पुरखों की पुण्य स्मृति तथा माँ गंगा को प्रणाम करते हुए मैं इस बैकुंठधाम को गाजीपुर के नागरिकों की सुविधा के लिए समर्पित करता हूँ “ !

जय हिन्द!

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